साईं को आज किस मजहब के लोग मानते हैं या नहीं मानते हैं, इससे भी कोई विशेष फर्क नहीं पड़ता। आस्था का बीजारोपण बचपन से ही हो जाता है। विरले ही होते हैं जो आगे चलकर उन्हें सिखाई हुई बातों से ऊपर उठकर अपने अस्तित्व को तलाशते हैं और अपने सही धर्म को पहचानते हैं। असली धर्म है स्वाधीनता, चिरशांति और शरणागति। साईं अपने धर्म को जान गए थे और बहुत सहज और सरल शब्दों में सभी को समझाने का प्रयास भी किया। श्रद्धा और सबुरी, शरणागति योग के सबसे सुंदर साधन हैं। ईश्वर साकार हो या निराकार समझ में सिर्फ शरणागति से ही आता है।
आप खुद को उसके समर्पित कर दीजिए। साईं खुद यही करते थे अब उनके भक्त उनके रूप में इसी योग को आगे बढ़ाते हैं। श्रद्धा और समर्पण की शक्ति ये है कि तमाम सकारात्मक ऊर्जाएं साईं भक्तों के लिए काम भी कर रही हैं। ये साईं बाबा की महिमा ही है, जो अपने दर तक आम और खास सभी को खींच लाती है। शिरडी में उनके मंदिर में अमीर-गरीब हर तरह के भक्तों की भीड़ रहती है। साईं के धर्म को लेकर बहुत विवाद होते रहे हैं। हाल के दिनों में भी शंकराचार्य की टिप्पणियों ने नई बहस को भी जन्म दिया।
दरअसल, इसकी जड़ में है साईं की बढ़ती लोकप्रियता। साईं का जिक्र वेदों-पुराणों में नहीं मिलता और फिर उनके धर्म को लेकर भी कई प्रश्न खड़े किए जाते हैं। ऐसा समय बुद्ध के अस्तित्व को लेकर भी आया था। बाद में बुद्ध ही विष्णु के दसवें अवतार मान लिए गए। हालांकि आप पाएंगे कि बुद्ध की प्रतिमाएं आपको मंदिरों में आम तौर पर दिखाई नहीं देती हैं। साईं का शिर्डी मंदिर इतना लोकप्रिय हुआ है कि अब देश में जगह-जगह उनके मंदिर बने या फिर पहले से बने मंदिरों में उनकी मूर्तियां स्थापित की गई। ये उनके प्रति बढ़ती आस्था की ही वजह से हुआ।
हम पेड़ों, नदियों और पत्थरों तक में साक्षात ईश्वर को देखने वाली आस्था की धरोहर लेकर चलते हैं ऐसे में साईं की मूर्तियों को लेकर विवाद ठीक नहीं लगता। फिर ये भी सर्वज्ञात है कि योगी का कोई धर्म नहीं होता, कोई जाति नहीं होती। वो इन सबसे ऊपर उठ जाता है।
इतिहासकारों की मानें तो साईं खुद कौन थे, किस धर्म में पैदा हुए थे-इसकी कोई ठोस जानकारी नहीं मिलती है। साईं पर लिखे गए कुछ पुराने ग्रंथों के आधार पर माना जाता है कि शिरडी के साईं बाबा का जन्म 1838 से 1842 के बीच हुआ था। वो एक फकीर और साधू जैसी जिंदगी जिया करते थे। साईं नाम उन्हें तब मिला जब वो कम उम्र में ही शिरडी आ गए। शिरडी में ही वो पुरानी मस्जिद में रहने लगे थे। मस्जिद में रहने की वजह से बहुत से लोग उन्हें मुसलमान मानते थे, लेकिन साईं ने खुद मस्जिद को 'द्वारका माई' नाम दिया था। इस वजह से बहुत से लोग उन्हें हिंदू धर्म का मानते थे।
जाहिर है, साईं ने कभी खुद को किसी एक धर्म से नहीं बांधा। साईं के भक्तों में कितने भक्त किस मजहब के हैं-ये कोई नहीं जानता है, लेकिन साईं ऐसे संत हैं जिन्हें हर धर्म के लोग मानते हैं। ये भक्त अपनी-अपनी श्रद्धा के मुताबिक साईं की भक्ति करते हैं, उन्हें साईं के धर्म को लेकर होने विवादों से कोई फर्क नहीं पड़ता।
साईं बाबा के भक्तों में शिरडी के मंदिर की दर्शन की खास वजह भी है। साईं 16 साल की उम्र में शिरडी आए थे और चिरसमाधि में लीन होने तक यहीं रहे। उनके देह त्यागने के महज 4 साल बाद 1922 में इस पवित्र मंदिर को साईं की समाधि के ऊपर बनाया गया। भक्तों का मकसद था कि इस मंदिर के जरिये साईं के उपदेशों और शिक्षाओं का बेहतर तरीके से प्रचार-प्रसार हो सकेगा।
ताजा आंकड़े हैं कि अब सालाना दो करोड़ से ज्यादा भक्त इस मंदिर में आते हैं। इन भक्तों के चढ़ाने की वजह से ही साईं धाम की गिनती देश के कुछ सबसे अमीर मंदिरों में होती है। साईं बाबा को यूं तो शिर्डी का साईं कहा जाता है क्योंकि उनकी जिंदगी का ज्यादातर समय शिर्डी में ही बीता। मान्यता भी यही है कि साईं शिर्डी में आज भी निवास करते हैं, लेकिन उनके मंदिर अब शिर्डी में ही नहीं बल्कि देश के हर कोने और हर गली में मिल जाएंगे।
इसलिए होते हैं शिर्डी के साईं बाबा के दरबार में चमत्कार..!

साईं को आज किस मजहब के लोग मानते हैं या नहीं मानते हैं, इससे भी कोई विशेष फर्क नहीं पड़ता।...
साईं को आज किस मजहब के लोग मानते हैं या नहीं मानते हैं, इससे भी कोई विशेष फर्क नहीं पड़ता। आस्था का बीजारोपण बचपन से ही हो जाता है। विरले ही होते हैं जो आगे चलकर उन्हें सिखाई हुई बातों से ऊपर उठकर अपने अस्तित्व को तलाशते हैं और अपने सही धर्म को पहचानते हैं। असली धर्म है स्वाधीनता, चिरशांति और शरणागति। साईं अपने धर्म को जान गए थे और बहुत सहज और सरल शब्दों में सभी को समझाने का प्रयास भी किया। श्रद्धा और सबुरी, शरणागति योग के सबसे सुंदर साधन हैं। ईश्वर साकार हो या निराकार समझ में सिर्फ शरणागति से ही आता है।
आप खुद को उसके समर्पित कर दीजिए। साईं खुद यही करते थे अब उनके भक्त उनके रूप में इसी योग को आगे बढ़ाते हैं। श्रद्धा और समर्पण की शक्ति ये है कि तमाम सकारात्मक ऊर्जाएं साईं भक्तों के लिए काम भी कर रही हैं। ये साईं बाबा की महिमा ही है, जो अपने दर तक आम और खास सभी को खींच लाती है। शिरडी में उनके मंदिर में अमीर-गरीब हर तरह के भक्तों की भीड़ रहती है। साईं के धर्म को लेकर बहुत विवाद होते रहे हैं। हाल के दिनों में भी शंकराचार्य की टिप्पणियों ने नई बहस को भी जन्म दिया।
दरअसल, इसकी जड़ में है साईं की बढ़ती लोकप्रियता। साईं का जिक्र वेदों-पुराणों में नहीं मिलता और फिर उनके धर्म को लेकर भी कई प्रश्न खड़े किए जाते हैं। ऐसा समय बुद्ध के अस्तित्व को लेकर भी आया था। बाद में बुद्ध ही विष्णु के दसवें अवतार मान लिए गए। हालांकि आप पाएंगे कि बुद्ध की प्रतिमाएं आपको मंदिरों में आम तौर पर दिखाई नहीं देती हैं। साईं का शिर्डी मंदिर इतना लोकप्रिय हुआ है कि अब देश में जगह-जगह उनके मंदिर बने या फिर पहले से बने मंदिरों में उनकी मूर्तियां स्थापित की गई। ये उनके प्रति बढ़ती आस्था की ही वजह से हुआ।
हम पेड़ों, नदियों और पत्थरों तक में साक्षात ईश्वर को देखने वाली आस्था की धरोहर लेकर चलते हैं ऐसे में साईं की मूर्तियों को लेकर विवाद ठीक नहीं लगता। फिर ये भी सर्वज्ञात है कि योगी का कोई धर्म नहीं होता, कोई जाति नहीं होती। वो इन सबसे ऊपर उठ जाता है।
इतिहासकारों की मानें तो साईं खुद कौन थे, किस धर्म में पैदा हुए थे-इसकी कोई ठोस जानकारी नहीं मिलती है। साईं पर लिखे गए कुछ पुराने ग्रंथों के आधार पर माना जाता है कि शिरडी के साईं बाबा का जन्म 1838 से 1842 के बीच हुआ था। वो एक फकीर और साधू जैसी जिंदगी जिया करते थे। साईं नाम उन्हें तब मिला जब वो कम उम्र में ही शिरडी आ गए। शिरडी में ही वो पुरानी मस्जिद में रहने लगे थे। मस्जिद में रहने की वजह से बहुत से लोग उन्हें मुसलमान मानते थे, लेकिन साईं ने खुद मस्जिद को 'द्वारका माई' नाम दिया था। इस वजह से बहुत से लोग उन्हें हिंदू धर्म का मानते थे।
जाहिर है, साईं ने कभी खुद को किसी एक धर्म से नहीं बांधा। साईं के भक्तों में कितने भक्त किस मजहब के हैं-ये कोई नहीं जानता है, लेकिन साईं ऐसे संत हैं जिन्हें हर धर्म के लोग मानते हैं। ये भक्त अपनी-अपनी श्रद्धा के मुताबिक साईं की भक्ति करते हैं, उन्हें साईं के धर्म को लेकर होने विवादों से कोई फर्क नहीं पड़ता।
साईं बाबा के भक्तों में शिरडी के मंदिर की दर्शन की खास वजह भी है। साईं 16 साल की उम्र में शिरडी आए थे और चिरसमाधि में लीन होने तक यहीं रहे। उनके देह त्यागने के महज 4 साल बाद 1922 में इस पवित्र मंदिर को साईं की समाधि के ऊपर बनाया गया। भक्तों का मकसद था कि इस मंदिर के जरिये साईं के उपदेशों और शिक्षाओं का बेहतर तरीके से प्रचार-प्रसार हो सकेगा।
ताजा आंकड़े हैं कि अब सालाना दो करोड़ से ज्यादा भक्त इस मंदिर में आते हैं। इन भक्तों के चढ़ाने की वजह से ही साईं धाम की गिनती देश के कुछ सबसे अमीर मंदिरों में होती है। साईं बाबा को यूं तो शिर्डी का साईं कहा जाता है क्योंकि उनकी जिंदगी का ज्यादातर समय शिर्डी में ही बीता। मान्यता भी यही है कि साईं शिर्डी में आज भी निवास करते हैं, लेकिन उनके मंदिर अब शिर्डी में ही नहीं बल्कि देश के हर कोने और हर गली में मिल जाएंगे।
साईं भक्तों का जीवन भी उनके चमत्कारों की कहानियों से भरा पड़ा है। कोई साईं को देखने का दावा करता है तो कोई साईं की शरण में आने के बाद अपने जीवन में आए सकारात्मक बदलावों की कहानी कहता है।
साईं का कहना है सबका मालिक एक। वो खुद कहते हैं कि उनका मालिक और आपका मालिक एक ही है। साईं जैसे योगी ईश्वर से एकाकार हो जाते हैं। यहीं वजह है कि भक्त फिर उन्हें ईश्वर की तरह ही पूजते हैं। पतंजलि ने भी शरणागति को सर्वोत्तम योग बताया है इससे पहले पूरी गीता में शरणागति योग की महिमा है। योग की इस परंपरा के अनुसार भी जो सच्चे ह्रदय से साईं की शरण जाता है वो जीवन में सकारात्मक परिवर्तनों का अनुभव कर सकता है।